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लेखनी कहानी -04-Jun-2022 हरिवचन

हरिवचन


भाग - 3


सोशल मीडिया वीरों को सलाम


आज सोशल मीडिया का जमाना है। किसी जमाने में कहा जाता था कि " जीवन के बस तीन मकाम , रोटी, कपड़ा और मकान " वैसे ही आज कहा जाता है कि " जीवन जीने का यही है आइडिया , स्मार्ट फोन, नेट और सोशल मीडिया " । बिना सोशल मीडिया के जीवन की कल्पना मात्र से ही दिल कांप उठता है । शायद इस स्थिति का अनुमान बहुत पहले से ही हमारे फिल्म निर्माताओं ने लगा लिया था इसीलिए उन्होंने एक गाना इस पर लिख दिया ।


" तुम बिन जीवन , कैसा जीवन " । इस गीत को महान गायक मन्ना डे ने गाया था। आज की पीढ़ी को तो शायद मन्ना डे का नाम तक पता नहीं होगा । ये गीत तब का है जब आज की पीढ़ी पैदा भी नहीं हुई थी । वाकई , हमारे फिल्म कार बहुत दूरदर्शी होते हैं।


सोशल मीडिया किसे कहते हैं ? अभी तक तो इसकी कोई सर्व स्वीकृत परिभाषा नहीं दी गई है परन्तु हमारे बहुत से सोशल मीडिया गुरुओं से हमें ज्ञात होता है कि व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी, फेसबुक इंटरनेशनल स्कूल, यू ट्यूब वीडियो कालेज , ट्विटर कोचिंग इंस्टीट्यूट , इंस्टाग्राम गुरुकुल , टिकटाॅक प्रशिक्षण केन्द्र जैसे सैकड़ों शैक्षणिक संस्थानों द्वारा प्रसारित ज्ञान सोशल मीडिया कहलाता है । इस ज्ञान की धारा अविरल बहती रहती है। कभी कोई जमाने में हमारे यहां नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय विश्व प्रसिद्ध थे लेकिन आज उक्त "शैक्षणिक संस्थानों "के सामने वो बहुत तुच्छ प्रतीत होते हैं । तो ऐसे ज्ञान के केंद्र ही सोशल मीडिया है ।


एक जमाने में एक बहुत प्रसिद्ध फिल्म आई थी " दीवार " । जिसके डायलाग प्रसिद्ध वामपंथी लेखक सलीम जावेद ने लिखे थे। सलीम खान सलमान खान के पिता हैं और जावेद अख्तर तो महान फरहान अख्तर , जोया अख्तर के पिता हैं जिन्हें ये नहीं पता था कि CAA क्या है और उसका विरोध करने पहुंच गये । ऐसे महान वामपंथी लेखकों ने ऐसे ऐसे डायलाग लिखे कि भारतीय संस्कृति पानी पानी हो गई और एक खास मजहबी संस्कृति फलती फूलती रही । फिल्म का एक डायलॉग बहुत फेमस हुआ था


अमिताभ बच्चन , " मेरे पास गाड़ी है , बंगला है , धन है , दौलत है , तेरे पास क्या है " ?


शशि कपूर , " मेरे पास मां है " ।


आज के परिवेश में शशि कपूर कहता


" मेरे पास सोशल मीडिया है " ।


और हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है ।


तो ऐसे सोशल मीडिया पर ज्ञान की अजस्र वर्षा होती रहती है। यहां पर भारतीय फिल्मों की तरह " पतझड़, सावन, बसंत , बहार । एक बरस के मौसम चार " जैसे चार  मौसम नहीं होते । केवल एक ही मौसम होता है और वह है वर्षा का जो हर वक्त होती रहती है । हर दम ज्ञान का प्रकाश फैला रहता है यहां पर । समेटने वाला चाहिए। जिसकी जितनी क्षमता उसने उतना ज्ञान बटोरा । ये ज्ञान भी लगभग मुफ्त में ही मिलता है । हम भारतीय तो मुफ्त के माल के इतने मुरीद हैं कि मुफ्त के चक्कर में अराजक तत्वों को भी मुख्यमंत्री बना देते हैं ।


सोशल मीडिया पर जो व्यक्ति रात दिन लगे रहते हैं , प्रवचन करते रहते हैं, अपनी नृत्य , पाक कला का प्रदर्शन करते हैं । मेरे जैसे कलम घसीटू अपनी बकवास से हमेशा बोर करते रहते हैं । कविताएं, गीत , ग़ज़ल के अथाह समुद्र में गोते लगवाते रहते हैं। पैरोडी , डब मैश जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों से मनोरंजन करते रहते हैं , उन संतों , प्रवचन कारों ,  कलाकारों, कथाकारों , कवियों, गीतकारों, साहित्यकारों , गायकों को सम्मिलित रूप से सोशल मीडिया वीर कहते हैं । यह सोशल मीडिया का ही कमाल है कि लोग एक ही दिन में महा ज्ञानी बन जाते हैं ।


जब ये 'चाइनीज वायरस ' कोरोना भारत में आया तो हर एक व्यक्ति डॉक्टर बन गया । वैसे,  उसने स्कूल में पढ़ाई केवल प्राइमरी तक की की हो लेकिन ज्ञान ऐसे बघारता है जैसे उसने चाइनीज वायरस पर ही DM की डिग्री ली हो । सोशल मीडिया पर ज्ञान की गंगा बहने लगी । हमको ये करना चाहिए ये नहीं करना चाहिए । एक से बढ़कर एक ज्ञानी । जाने कहां कहां से ज्ञान लेकर आते हैं और थोक के भाव यहां उड़ेलते हैं ।


एक भाईसाहब हैं जो एक घंटे की भी भूख बर्दाश्त नहीं कर सकते । भोजन में जब तक चार सब्जी , सलाद , अचार, पापड़, मीठा नहीं हो , हाथ तक नहीं लगाते । उन भाईसाहब ने एक दिन एक पोस्ट शेयर की कि हमको इस कोरोना संकट में केवल एक टाइम भोजन करना चाहिए । दाल बने तो उसमें पानी की मात्रा दुगनी कर देनी चाहिए। एक टाइम भोजन में भी रोटियों की मात्रा आधी कर देनी चाहिए । और ब्ला ब्ला ब्ला । पढ़कर आंसू आ गए । इतने महान त्यागी मेरे देश में अभी तक पाये जाते हैं , ये देखकर दिल गदगद हो गया । आंखों से गंगा-जमुना बह निकली । श्रद्धा से नतमस्तक हो गया ।

अगर वो मेरे पास होते तो उनके चरणों की धूल सिर आंखों पर लगा कर कहता , हे तात , तुम अब तक कहां छुपे हुए थे । इस धरा पर कब अवतरित हुए प्रभु । आंखें तरस गई थीं प्रभु आपके दर्शन को । हे दीनदयाल , हे  गरीब नवाज़ । आप पहले ही अवतार ले लेते तो हम अमरीका के सामने गेंहू के लिए सन् 1965 में नहीं गिड़गिड़ाते । मैंने आप जैसा त्यागी व्यक्ति तीनों लोकों में नहीं देखा प्रभु । आपके त्याग के सामने तो महर्षि दाधीच का त्याग भी तुच्छ नजर आता है प्रभु । कोरोना संकट रूपी बीमारी के लिए आपके इस त्याग से एक वज्र बनाया जायेगा प्रभु और उससे इस चाइनीज वायरस का खात्मा हो सकेगा । आपका यह उपकार भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व कभी नहीं भूलेगा प्रभु । आपने तो अपने इस दान से दानवीर कर्ण को भी बहुत पीछे छोड़ दिया है तात् ।


सोशल डिस्टेंसिंग की बाध्यता के कारण न तो ये महानुभाव मेरे घर आ सकते थे और न ही मैं उनके घर जा सकता था । ये तो सोशल मीडिया ही है जिस पर मैं अपनी लेखनी के माध्यम से आभार व्यक्त कर सकता हूं । केवल मैसेज देने से मुझे तसल्ली नहीं हुई । लगा कि उन्होंने इतना बड़ा त्याग किया है और मैं केवल मैसेज से निपटा रहा हूं । मेरे से बड़ा कृतघ्न और कौन होगा ?  मेरा मन मुझे धिक्कारने लगा । मैंने उनको फोन लगाया तो मालूम हुआ कि वो खाना खा रहे थे । मैंने उनके त्याग की भूरि भूरि प्रशंसा की । वो बड़े गदगद हो गये । मैंने कहा " तात् । पानी पानी वाली दाल कैसी लग रही है " ?


वो बोले, "पर दाल तो आज बनी ही नहीं। आज तो  शाही पनीर , दम आलू , रायता और भिंडी बनी है" ।


मैंने कहा , "पर अपने तो कहा था कि एक टाइम भोजन करो । दाल में पानी की मात्रा दोगुनी कर दो । आपको याद नहीं है प्रभु" ?


अचानक मुझे याद आया कि महात्मा लोग छोटे छोटे उपकार याद नहीं रखते। नेकी कर दरिया में डाल वाली कहावत पर विश्वास रखते हैं।


वो बोले, "मैंने ऐसा कब कहा" ?


मैंने कहा, "भगवान्। आपने व्हाट्सएप रूपी शास्त्र में ऐसा कहा है प्रभु । आज का अध्याय इसी के बारे में है ।


पर उनको याद नहीं आया । शायद किसी शाप के कारण आप भूल गए होंगे जैसे कर्ण अपनी सारी विद्या भूल गया था" ।


खैर, मैंने वो मैसेज पढ़कर सुनाया तब वो कहने लगे । "भाईसाहब , मैं कम से कम 25 ग्रुप में हूं। न जाने कितने मैसेज आते हैं । सबको कौन पढ़ता है। मैं तो इस ग्रुप का मैसेज उस ग्रुप में और उस ग्रुप का मैसेज तीसरे ग्रुप में भेज देता हूं । बाकी का काम पढ़ने वालों का है" ।


मैंने कहा , "धन्य हैं आप और आपका कृत्य । मैं तो कृतार्थ हो गया प्रभु" । और फोन काट दिया ।


एक स्वयंभू ईमानदार नेता हैं। ईमानदारी का सर्टिफिकेट बांटते रहते हैं । खांस खांस कर अपने होने का संदेश देते रहते हैं । जब सत्ता में नहीं थे तो उन्होंने अपने बच्चों की कसम खाकर कहा कि वो न तो इस दल का साथ लेंगे और न उस दल का । लेकिन यह क्या ? उन्होंने तो इस दल के साथ मिलकर सरकार बना ली । ये सोशल मीडिया का जमाना है । भाई लोग वो वीडियो निकाल कर ले आये जिसमें बच्चों की कसम खाई थी । पर बेशर्मों को कुछ फर्क पड़ता है क्या ?


कहते हैं कि संत वही है जो स्थितप्रज्ञ हो । महान संत की तरह अमर वाणी में बोले।


आपने मनोज कुमार का नाम सुना है ?


भाई लोगों ने कहा, हां ।


उन्हें भारत भी कहा जाता है ।


हां ।


मतलब , उनसे बड़ा तो कोई देशभक्त नहीं है ?


हां, भई हां ।


तो उन्हीं मनोज कुमार ने अपनी फिल्म ' उपकार ' में एक गीत गाया है ।


कसमें वादे प्यार वफा सब ,


बातें हैं , बातों का क्या ?


तो भाई , मेरी भी कसम मनोज कुमार  वाली ही  है।


भाई लोगों ने उनके चरण पकड़ लिए और ऐसी भक्ति दिखाई कि लगातार तीन बार उन्हें अपना भगवान मानकर प्रसाद चढ़ाते रहे ।


सोशल मीडिया वीरों पर तो कई  एपीसोड बन सकते हैं । लेकिन मैं जानता हूं कि सुधी पाठकों में सागर जैसा धीरज तो होगा नहीं जो हर कोई ऊल जलूल को पढ़ने का श्रम करें ।


तो


हरि अनन्त हरि कथा अनंता ।


कहहु सुनेहु सब बिधि सब संता ।।


सोशल मीडिया वीरों की कथा भी अनंत है । एक बड़ा वाला सलाम इनके लिए ।


हरिशंकर गोयल " हरि "
12.4.20


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1 Comments

Reyaan

09-Jun-2022 05:33 PM

👏👌

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